Shakila Begum

अभी संघर्ष और बाकी है
मेरा नाम शकीला बेगम है।  भदोही जिले में मेरा मायका है।  जब मैं  15 वर्ष की थी तभी मेरे माता-पिता ने मेरा विवाह बनारस जिले के रहीमपुर गाॅव, लोहता के पास के एखलाक we12नाम के व्यक्ति से कर दी। माता-पिता ने लड़के की सरकारी नौकरी देखकर शादी की थी, परन्तु भाग्य में सुख नहीं था, शादी के कई वर्षों तक जब संतान नहीं हुई तो पति एवं साॅस की प्रताड़ना बढ़ने लगी। इसी बीच मेरे पति का दूसरे औरत से भी संबंध हो गया, तभी शादी के 10 वर्ष बाद मुझे एक पुत्र हुआ, किन्तु पति का मन फिर भी मेरे प्रति गैर जिम्मेदाराना ही रहा और उनका अधिकांश समय दूसरी औरत में लगा रहता था और एक दिन  अचानम मेरे पति ने उससे शादी कर उसे घर ले आयें। तब से आज तक मैं एं कमरे में रह रही हूॅ। दूसरी शादी करने के बाद पति से गुजारा भत्ता के लिए मुझे काफी संघर्ष करना पड़ा। पति पर केस करने के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे तो रहीमपुर में चलने वाले स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने मेरी मदद की और बाद में, मैं भी उसी समूह की सदस्य बन गई। मैं मुकदमा जीत गयी और पति से गुजारा भत्ता पाने का आदेश कोर्ट से हो गया है, किन्तु अभी भी मेरे पति 4-6 महीने पर कुछ पैसा देते हैं। कहने पर मारपीट, गाली, गलौज होता है। इसी बीच संस्था ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से गाॅव में सामुदायिक पुस्तकालय के लिए पुस्तकालयाध्यक्ष का कार्य आया जिसमें मुझे रहीमपुर पुस्तकालय हेतु रखा गया, जिससे मुझे कुछ आर्थिक सहायता मिली। मदरसा ख्वाजा गरीब नवाज,रहीमपुर-लोहता में मैं बच्चों को पढ़ाती भी थी, साथ ही बड़ी लड़कियों को सिलाई-कढ़ाई भी सिखाती हूॅ जिससे मेरा और मेरे बेटे का भरण-पोषण हो जाता है।  मैं लोहता में संस्था के सहयोग से सूचना केन्द्र भी चला रही हूॅं, और ग्रामीण विकास की योजनाओं की जानकारी सबके बीच फैला रही हूॅ। अभी आगे मेरा संघर्ष अपने अधिकार की लड़ाई के लिए अपने पति से जारी रहेगा।

शकीला बेगम

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