Case Study – Chanda

शिक्षा के लिये बढें हाथ तो अधिकार तक पहुंची बात-महिला शिक्षा की हकीकत

मेरा नाम चन्दा है। मेरी उम्र 32 साल है और हिरामनपुर, सारनाथ, वाराणसी में रहती हूं और मेरे 3 बेटे हैं। बचपन से ही मैं कुछ करना चाहती थी, कुछ बनना चाहती थी लेकिनWE2 मात्र 15 साल की उम्र में ही मेरी शादी हो गई। मेरी आगे पढ़ने की इच्छा थी लेकिन ससुराल वालों का विरोध झेलना पड़ा। परिवार वालों ने कहा 9 वीं तक पढ़ लिया, अब बहुत हो गई पढ़ाई-लिखाई। घर के काम-काज में मन लगाओ। उस दिन ऐसा लगा कि जो सपने मेरी आँखों ने देखे हैं वो चूर-चूर हो गये। घर वालों को बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन कुछ भी हाथ नहीं लगा। सोचा कि मेरे पति मेरा साथ जरुर देंगे लेकिन उन्होंने भी मुझे निराश कर दिया। किसी ने भी मेरा साथ नहीं दिया लेकिन मैंने भी ठान लिया कि मुझे पढ़ना है और अपने ज्ञान को समाज की सेवा में लगाना है। मैंने सिलाई करना शुरु किया और उससे जो पैसे आते थे उससे मैंने परिवार वालों से छुपकर फाॅर्म भरा और अपनी आगे की पढ़ाई करने लगी। जब परिवारवालों का पता चला तो घर में फिर से तनाव शुरु हो गया। मैं सबकी बात चुपचाप सुनती रही लेकिन अपनी पढ़ाई को बन्द नहीं किया। मन में इच्छा थी कि जिन्दगी में किसी के लिये कुछ करुं तो मैंने एक स्कूल में बिना वेतन के पढ़ाना शुरु किया। स्कूल के प्रधानाचार्य ने मुझसे पूछा कि आप वेतन क्यांे नहीं लेती हैं तो मैंने कहा कि मुझे वेतन नहीं चाहिए, मुझे अनुभव चाहिये। मुझे इन बच्चों को बिना वेतन के पढ़ाकर बहुत संन्तुष्टि मिलती है। मैंने उस स्कूल में एक साल तक पढ़ाया फिर मेरे ससुराल वालों ने मेरा स्कूल जाना बन्द करा दिया। मैं अपने ससुराल वालों से अलग रहने लगी और फिर मैंनेें प्रभाव स्कूल, सन्दहा में पढ़ाना शुरु किया। घर में बच्चे को कोई संभालने वाला नहीं था इसलिये मैं बच्चे को साथ लेकर जाती थी। मैंने स्कूल में पढ़ाने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई को भी जारी रखा और आज मैं संस्कृत में एम. ए. कर चुकी हूं। 2 साल तक परिवार वाले मिलने तक नहीं आये। फिर उन्हें भी एहसास हो गया कि मैं हार नहीं मानूंगी। सबसे पहले मुझे मेरे ससुर का सहयोग मिला फिर धीरे-धीरे सभी घरवालों का। आज मुझे मेरे पति भी पूर्ण सहयोग देते हैं। मैंने 11 सालों तक प्रभाव स्कूल में पढ़ाया। फिर मुझे एच. डब्लू. ए. संस्था के सहयोग से सन् 2011 में सन्दहा गाँव की ग्रामीण क्षेत्र की निरक्षर महिलाओं को पढ़ाने का अवसर मिला। महिलाओं में पढ़ाई को लेकर बहुत उत्साह था। कुछ महिलायें तो ऐसी थीं जिन्हें पढ़ने की इच्छा तो थी लेकिन परिवार वालों का दबाव था। उन महिलाओं में मैं खुद को खोजती थी। मैंने ठाना कि जो मेरे साथ हुआ है वैसा मैं इनके साथ नहीं होने दूंगी। मैंने महिलाओं के परिवारवालों से बार-बार बात की और एक दिन ऐसा आया जब उनके परिवारवाले भी मान गये। जिस दिन महिलाओं ने पहली बार अपना नाम लिखा उस दिन खुशी के कारण महिलाओं के साथ-साथ मेरी भी आँखें नम हो गईं। पहले तो महिलाओं के हाथ पेन्सिल पकड़ने में भी कांपते थे और आज वही महिलायें किताब, अखबार पढ़ रही हैं, गिनती लिख रही हैं, जोड़-घटाना, गुणा-भाग कर रही हैं, मोबाइल, कैलकुलेटर, घड़ी, कैलेण्डर को इस्तेमाल कर रही हैं। अब मैं केवल सन्दहा गाँव की ही महिलाओं को नहीं पढ़ा रही हूं बल्कि अन्य 5 गाँवों की महिलाओं को 5 दिवसीय कैम्प के जरिये शिक्षित कर रही हूं और महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के लिये मैं 8 समूह चला रही हूं। आज बहुत खुशी होती है और मन को तसल्ली भी मिलती है कि मेरा संघर्ष बेकार नहीं गया, मैं किसी के लिये कुछ कर रही हूं।

चन्दा – मो0 7054625224, 9721821257

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