Sarita and Savitri

‘‘जहाँ चाह है वहाँ राह है।’’

इन लाइनों को सच कर दिखाया सरिता देवी ने। मात्र 17 साल की उम्र में शादी के बन्धन में बंध गईं। संयुक्त परिवार होने के कारण घर के काम-काज में ही अपना समय लगाती लेकिन मन में कुछ करने की इच्छा सांसे ले रही थी। ससुराल पक्ष का सहयोग न होने के बावजूद पति ने आगे पढ़ने के सपने को सवांरा और सरिता ने शुरु कर दी पढ़ाई। स्नातक तक पढ़ने के बाद सरिता को महसूस होने लगा कि मेरा इतना पढ़ना-लिखना किस काम का जब मैं किसी के लिये कुछ कर ही न सकूं। मैं अपने ज्ञान से दूसरों की जिन्दगी में भी उजाला लाऊं तो मेरा ये जीवन सार्थक हो पायेगा। बस इस धेय के साथ स्कूल में बच्चों को पढ़ाना शुरु किया। ससुराल वालों ने विरोध किया और कहा कि घर का काम पूरा किये बिना तुम्हें बाहर नहीं जाना है। स्कूल में 6 सालों तक पढ़ाया लेकिन जब दलित महिलाओं की स्थिति देखती तो उनके लिये कुछ करने की इच्छा होती तो महिला साक्षरता व सशक्तिकरण के कार्यक्रम से जुड़ी। घरवालों ने कहा कि दलित महिलाओं के साथ काम नहीं करना है, लोग क्या कहेंगे कि हमारी बहू दलित बस्ती में जाकर पढ़ाती है। फिर भी अपने इरादों को पक्का रखा और दलित बस्ती की महिलाओं को पढ़ाना और उन्हें आर्थिक रुप से सशक्त करना शुरु किया। आज सरिता सीवों, शंकरपुर, घुघुरी, पचराँव और छोटी पिछवारी गाँवों की 210 महिलाओं को सशक्त कर रही हैं।

नाम – सरिता देवी
गाँव – चिरईगाँव, विकासखण्ड – चिरईगाँव, वाराणसी

बचपन से ही अपनी माँ को समाज सेवा के काम में समर्पित देखकर सावित्री देवी के मन में भी समाज सेवा की इच्छा ने जन्म लिया और वे खासकर महिलाओं की स्थिति को सुधारना और उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरुक करना चाहती थीं। महज 17 साल की उम्र में विवाह हो गया। आगे और पढ़ने की इच्छा थी लेकिन ससुरालवालों और पति ने बढ़ावा नहीं दिया। आगे पढ़ने की इच्छा तो पूरी नहीं हो पाई लेकिन महिलाओं के लिये कुछ करने की इच्छा के साथ समझौता करना तनिक भी मंजूर नहीं था। ससुराल से अलग रहकर महिला सशक्तिकरण का अभियान चलाया। सावित्री के संघर्ष में किसी ने उसका साथ नहीं दिया सिवाय उसकी माँ और 2 साल के बच्चे नेे। घर में बच्चे को कोई भी संभालने वाला नहीं था इसलिये बच्चे को माँ के पास रखना पड़ा। इस परिस्थिति को भी बडे़ ही धैर्य के साथ संभाला। अब इनके पति गोरखपुर मे नौकरी करते हैं और सावित्री अपने 7 साल के बच्चे के साथ चिरईगाँव में क्र्वाटर लेकर रहती हैं और प्रहलादपुर, कमौली, आराजी, गौराकला, हातापर और नईकोट गाँवों की कुल 230 महिलाओं को पढ़ाती हैं व 2000 महिलाओं के संगठन (महिला अधिकार मंच) को अपना सहयोग प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हंै जिससे महिलायें अपने अधिकारों के लिये लड़ सकें। साइकिल की मदद से प्रतिदिन 10 से 12 किलोमीटर की दूरी तय करती हैं और कहती हैं कि मुझे अपने काम से सन्तुष्टि मिलती है कि मैं किसी के लिये कुछ कर रही हूं और मैं इसके बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती।

नाम – सावित्री देवी
गाँव – चिरईगाँव, विकासखण्ड – चिरईगाँव, वाराणसी

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