Case Study -Radhika Devi

उत्पीड़न ने मजबूती का रास्ता दिखाया
मेरा नाम राधिका है, मैं इस समय 32 वर्ष की हूॅं। मैं जन्सा की रहने वाली हूॅं। जब मैं 14वर्ष की थी, तभी मेरे परिवार वालोें ने मेरी शादी बड़ागाॅव निवासी शैलेन्द्र प्रसाद के साथ कर we8दी। मेरा बाल-विवाह हुआ था, जब मैं अपने ससुराल गई तो वहाॅ पति का व्यवहार मेरे पति ठीक नहीं था। मेरे पति बहुत ही शक्की दिमाग के हैं, वो हर समय मुझ पर शक करते रहते हैं। जब ये बातें मैं अपने घर वालों को बताती हूॅ तो वो लोग भी कुछ खास नहीं कर पाते, क्योंकि गरीबी की वजह से मेरे मायके वाले मेरे ससुराल वालों से बैर नहीं रखना चाहते थें। धीरे-धीरे मायके का सहयोग खत्म हो गया और मैं बिल्कुल अकेली हो गयी। इस बीच मेरे दो बेटे भी हुए। वर्तमान में मेरा बड़ा बेटा 12 वर्ष और छोटा बेटा 10 वर्ष का है। धीरे-धीरे पारिवारिक कलह इतना बढ़ गया कि मुझे अकेले रहने का निर्णय लेना पड़ा। अपने और बच्चों के भरण-पोषण हेतु मुझे बाहर जाकर कार्य करना पड़ा। मैंने 2007 से 31 मार्च 2011 तक महिला सामाख्या नाम संस्था के साथ जुड़कर महिला अधिकार के लिए कार्य किया, इसके बाद अप्रैल 2011 से संस्था ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन से जुड़कर ग्रामीण महिलाओं को शिक्षित करने का कार्य कर रही हूॅं। वर्तमान में, मैं चिरईगाॅव में किराये का मकान लेकर अपने दोनों बच्चों के साथ रहती हूॅं। मेरे दोनों बच्चे कान्वेण्ट स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं। अभी भी मेरे पति कभी कदा यहाॅ आकर हंगामा करते हैं, कई बार तो संस्था के लोगों के साथ मिलकर मैंने पति के खिलाफ थाने में एफ0आई0आर0 भी करवायी। मैं वर्तमान में ग्रामीण महिलाओं के बीच शिक्षा की अलख जगा रहीं हूॅ।
राधिका देवी

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